भारत वर्ष में दिनोदिन हो रही मातृभाषा "हिंदी" की उपेक्षा अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण

 कब तक मनाये जाएंगे "हिंदी दिवस" व लगाए जाएंगे खोखले नारे


वास्तव में यह हमारे देश का बड़ा दुर्भाय है कि हम अपनी मातृभाषा की अपने ही देश में दिनोंदिन उपेक्षा करते चले जा रहे हैं,और उससे बड़ा हम देश वासियों का यह दुर्भाग्य कि हमें हिंदी दिवस मनाना पड़ रहा है,एक आंकलन के अनुसार  हिन्‍दी विश्‍व में चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्‍यादा लोग बोलते हैं,आइये हिंदी दिवस के बारे में बात करें,स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब अपनी राजभाषा बनाये जाने पर विस्तार पूर्वक चर्चा हुई तो 14 सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभा ने सर्वसम्मति से हिंदी को राजभाषा बनाये जाने का निर्णय लिया व संविधान के भाग 17 अध्याय की धारा 343 पर उल्लिखित किया गया तब से हमारे देश में प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है,और खासकर सरकारी कार्यालयों में व चंद निजी संस्थाओं में कार्यक्रम आयोजन की लकीरें पीटी जाती हैं सरकारीताजा आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत में 43.63 फीसदी लोग हिन्‍दी भाषा बोलते हैं. जबकि 2001 में यह आंकड़ा 41.3 फीसदी था. तब 42 करोड़ लोग हिन्दी बोलते थे. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2011 के बीच हिन्दी बोलने वाले 10 करोड़ लोग बढ़ गए हैं  भले ही यह भारत की बढ़ती जनसंख्या का प्रभाव हो पर इससे स्पष्ट हो गया है कि हिन्दी देश की सबसे उपयोगी भाषा है इसे उसका उचित सम्मान नहीं मिल रहा है, इसे हिन्‍दी का सौभाग्य कहें की  अब लगभग सभी विदेशी कंपनियां भले उनका कोई उद्देश्य हो पर वे हिन्‍दी को बढ़ावा दे रही हैं. एक ब्यौरे के अनुसार दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल में पहले जहां अंग्रेजी कॉनटेंट को वरीयता दी जाती थी वहीं गूगल पर अब केवल व्यावसायिक दृष्टि से हिन्‍दी और अन्‍य क्षेत्रीय भाषाओं को वरीयता दी जा रही है,दूसरे उदाहरण में ई-कॉमर्स साइट अमेजन इंडिया ने अपना हिन्दी ऐप्‍प लॉन्च किया है. ओएलएक्स, क्विकर जैसे प्लेटफॉर्म पहले ही हिन्दी में उपलब्ध हैं. स्नैपडील भी हिन्दी में है, इसी तरह इंटरनेट  से भी हिंदी प्रसार में वृद्धि बताई गई है जिसके अनुसार 2016 में डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने की संभावना व्यक्त की जा रही है,एक अन्य अनुमान के अनुसार 2021 में हिन्दी में इंटरनेट उपयोग करने वाले अंग्रेजी में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से अधिक हो जाएंगे. 20.1 करोड़ लोग हिन्दी का उपयोग करने लगेंगे, जबकि अंग्रेजी में यह दर सालाना 17 फीसदी है, फिर भी शैक्षिक पाठ्यक्रम और वास्तविक उपयोगिता की दृष्टि से हिंदी बहुत पिछड़ गई है, हमारे देश का दुर्भाग्य देखिए आज " हिंदी" जिसे हम कहते तो माथे की बिंदी हैं पर उसकी उपेक्षा घोर कर रहे हैं,आज देश की सरकारी शिक्षण संस्थाओं में गिरती छात्र संख्या इस बात का जीता जागता उदाहरण है, आज परिषदीय विद्यालयों में प्रबंधन और आधिकारिक गड़बड़ियों के चलते शिक्षा व्यवस्था चौपट होती जा रही है,अब परिषदीय विद्यालय व वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाएं गरीब व कमजोरों के लिए जानी जाने लगीं हैं,आज अंग्रेजी मोह के चलते ही  प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सफेदपोश व अधिकारीवर्ग अपने बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते हैं, यदि स्वार्थ में डूबी सरकारों ने अपना दोहरा चरित्र न त्यागा तो यह सुनिश्चित है कि ये सरकारी विद्यालय बिल्कुल बन्द हो जाएंगे, एक तो एक तरफ परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों पर गैर विभागीय कार्यों का बढ़ता बोझ है दूसरी तरफ विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से कर्तव्य में लापरवाही भी चरम पर है जिसके फलस्वरूप अभिभावकों का मोह कान्वेंट विद्यालयों की तरफ बढ़ा है,जहां कमाई के लिए हिंदी की जगह अंग्रेजी को वरीयता दी जा रही है, एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि एक तरफ उच्च पदों की सेवाओं, न्यायालयों,विभागों में खुलेआम अंग्रेजी का प्रयोग हो रहा है,उपभोक्ता वस्तुओं में मूल्य व समाप्ति तिथि केवल अंग्रेजी में लिखी जा रही है विद्यालयों में पूर्णतया अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई हो रही है, और दूसरी तरफ हम हिंदी दिवस मनाने का ढोंग कर रहे हैं,आज बड़े पूर्वाग्रह के तहत हिंदी बोलने व लिखने वाले की अपेक्षा अंग्रेजी बोलने व लिखने वाले को ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है,कमीशनखोरी के कारण पुराने हिंदी के विद्वान कवि,लेखकों के रोचक,नैतिक,प्रेरक साहित्य विलुप्त हो गए हैं,घरों से रामायण,रामचरित मानस,गीता जैसे पवित्र ग्रंथ गायब हो गए जिसके फलस्वरूप हिंदी की और दुर्दशा हुई है,


ऐसे में हमारे देश के जिम्मेदार


 सफेदपोश,अधिकारियों,समाजसेवियों का दायित्व बनता है कि "हिंदी" को यथार्थ में माथे की बिंदी बनाये जाने के लिए उठ खड़े हों,आम बोलचाल व प्रयोग में हिंदी अपनाएं क्यों कि हमारे देश में सर्वाधिक विदेशियों ने घुसपैठ की है इसलिए विभिन्न भाषाएं जिनमें उर्दू,फारसी,अंग्रेजी प्रमुख है ये भाषाएं हिंदी में घुलमिल गईं हैं जिन्हें अलग करके शुद्व प्रयोग करें और हिंदी को उससे भी ऊंचा स्थान दिलाएं जो आज अंग्रेजी को मिला है,इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास व त्याग करना होगा दिखावा नहीं, इसका मतलब यह नहीं कि ऐसा हो नहीं सकता,ऐसा हर संभव है,ऐसी क्षमता है आप में-फिर देखो हिंदी संसार का सम्राट बन जाएगी


     "केवल नहीं राई का पर्वत,                                     


      कर्ता ही करता इस संसार में!   


      तुम भी कर सकते 'मानव', 


    सूक्षम धरा एक ही धनुष टंकार में!!


                                घनश्याम सिंह यादव
                 उप संपादक (अमर स्तम्भ)
                  साहित्यकार


 ईमेल:ghanshyam.gen@gmail.com