तुगलकी फरमान के डर से सहमा बाजारएक वैज्ञानिक तथ्य है -किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें एक ठोस कार्ययोजना बनानी होती है और सुसंगठित क्रमबद्ध तरीके से कई चरणों में योजना को मूर्त रूप देते हुए लक्ष्य तक पहुंचाते हैं । व्यापार हो, घर हो, कृषि हो या देश सब को चलाने के लिए हम योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ते हुए ही उपलब्धियों को हासिल कर पाते हैं । देश को चलाने के लिए विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमारी सरकारें भी तमाम योजनाएं बनाती हैं । और उन्हें अमलीजामा पहनाने के लिए सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ती हैं । लेकिन हमारी वर्तमान सरकार इसके उलट काम करती है । वह लक्ष्य तो साधती है उसके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनाती । पिछले पाँच सालों में हमारी सरकार ने जिस तरह से लक्ष्य साधे और फरमान जारी किए उसने इस देश में सामाजिक और आर्थिक अराजकता को जन्म दिया । जिस के आगोश में समूचा देश कसमसा रहा है । भय और भूख का साम्राज्य खड़ा हो गया है । सब कुछ अस्त-व्यस्त है । सरकार के पास इन सब से निपटने का कोई रास्ता भी शायद नहीं है ।क्योंकि असमंजस और सड़क में लिए गए फैसलों ने देश को इस कदर तोड़कर रख दिया है कि उससे उबरना अब आसान नहीं है । इस अफलातूनीे फरमानों की वजह से देश तबाही की कगार पर आकर खड़ा हो गया है । उससे निकलने में शायद एक पूरी पीढ़ी समाप्त हो जाए । यह जो कुछ भी हो रहा है ,यूं ही नहीं हो रहा है । और ना ही सत्ता के शिखर में बैठे हुए लोग पागल और अज्ञानी हैं उनके अपने निहितार्थ हैं । उनका अपना लक्ष्य है । उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बेहतरीन कार्य योजना है । वह उसी पर काम कर रहे हैं । आमजन को लगता है कि यह हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार है तो हमारे हितों के अनुसार काम होगा । लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है । देश डूबता चला जा रहा है । आमजन बदहाल है । और सरकार हमारे घावों पर मरहम की जगह नमक छिड़क देती हैं । ऐसा क्यों हो रहा है। देश के बड़े-बड़े उद्योगपति अपना पैसा निकाल कर भाग रहे हैं । रोज तमाम उद्योगों के बंद होने और मजदूरों के बेरोजगार होने की खबरें अखबारों के सुर्खियां बन रहे है ।एक एक कर बाजार खत्म होता जा रहा है । स्टील अथॉरिटी , टेक्सटाइल , ऑटो सेक्टर , हिंडालको और parle-g जैसी लब्ध प्रतिष्ठित कंपनियां पलायन कर रही है। बैंकों ने हाथ खड़े कर दिए हैं । एसबीआई ने खुद अपनी 420 शाखाएं और 768 एटीएम बंद कर दिए हैं । लाखों लोग सड़क पर आ गए हैं । उनके हाथ से उनकी रोटी छीन ली गई है । मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 50 दिन में शेयर बाजार में निवेशकों के 12 लाख करोड़ डूब चुके हैं । रुपया डॉलर के मुकाबले अपने सबसे न्यूनतम स्तर ₹73 प्रति डालर पहुंच गया है । और सरकार मौन है । क्या सरकार को दिखाई नहीं दे रहा है ? ऐसा नहीं है । यह सब जानबूझकर हो रहा है । हमारी सरकार साम्राज्य वादियों के हाथों की कठपुतली है । यह एक वैश्विक साजिश के तहत हो रहा है । साम्राज्यवादी (पूंजीवादी) ताकतों की नजर भारत के बड़े बाजार पर है ।और इसीलिए वह हमारी अर्थव्यवस्था को मार कर नए सिरे से हमारे बाजारों पर उत्पादन से लेकर खपत तक अपना प्रभुत्व बनाने के उद्देश्य से बरसों से लगे हुए थे । जो अब साकार हो रहा है । अंबानी और अडानी जैसे लोग साम्राज्य वादियों के प्रतिनिधि हैं । देश गुलामी की ओर बढ़ रहा है । एक बार ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार करने भारत आई थी तो सैकड़ों साल तक राज किया । देश फिर कंपनी राज के हवाले करने की साजिश कामयाब हो चुकी है । जहां मानवीय मूल्यों के कोई मायने नहीं होते । इंसान को सिर्फ मशीन समझा जाता है ।
डा.राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ पत्रकार एवं
राजनैतिक विश्लेषक
निदेशक : मंगलम हॉस्पिटल पुराना शिवली रोड कल्यानपुर कानपुर नगर