अन्ना जानवरों के मौतों का जिम्मेदार कौन सरकार, नेता या फिर कोई और ?



 

आज प्रदेश मे अन्ना जानवरों को लेकर पूरे प्रदेश में हाय तौबा मचा हुआ है और क्यो नही मचना चाहिये, क्योकि सबसे ज्यादा अगर इन अन्ना जानवरो से परेशानी  हो रही है तो वो है किसान, और किसान के बाद रोड पर चलने वाले वाहनों और उन पर सवार लोग...अगर आप न्यूज पेपर लेकर बैठ जाते है तो सबसे ज्यादा न्यूज हर जिले मे आप को अन्ना जानवरों पर ही मिलेगी, अब अपराधी से अपराध का भय कम है प्रदेश के हर जिले मे पर अन्ना जानवर के घूमने का किसी गाडी मे आकर भिडने का और तरह तरह  तरह से उनके मरने का डर ज्यादा है पर एक सवाल और ये सवाल मेरे हिसाब से हर उस व्यक्ति के दिमाग में आयेगा जो आज की स्थति को आज के परिवेश को अपने पैमाने से नांप रहा है.!

क्या इन अन्ना जानवरों की मौत का जिम्मेदार वह व्यक्ति है जो इनको अन्ना करके छोड देते है और ये व्यक्ति कोयी और नही हम आप के बीच के ही है या फिर इनकी मौतों का जिम्मेदार सरकार है..... वैसे अगर देखा जाये तो सनातन धर्म की भागवत कथा मे कही ना कही लिखा गया है कि जानवर हो या मनुष्य यहां तक चीटी जितना कष्ट मनुष्य को अपनी म्रत्यु पर होता है उतना ही कष्ट जानवर को अपने म्रत्यु पर.............. फिर भी हम उनको तडफते हुये जगह जगह देखकर मन मे एक भी वार ये बिचार क्यो नही लाते कि इनको मै अन्ना नही छोडूंगा भारत देश की पुरानी प्रथा रही है कि राजनीत में कोयी भी मुद्दा किसी हद तक का क्यो ना हो चाहे वो आस्था हो या फिर किसी के मान सम्मान या फिर कुछ और जो आज कल बडी जोर पर है पर किसी को कोयी परवाह नही बल्कि उन्ही मुद्दो के सहारे सरकार बन जाती है और सरकार बनने के बाद मुद्दे हवा में...... पर मुद्दा यहा पर अपने राजनैतिक फायदे का नही बल्कि मुद्दा तो ये है कि जब हमको  पता है कि इंसान हो या जानवर या फिर कीट पंतगे सबकी जान का मोल उतना है जितना एक इंसान का तो फिर रोज मर रही गायों की मौतों का जिम्मेदार कौन है... ?

क्यो हम इन अन्ना जानवरों का जो हम सबने अन्ना करके छोड दिये है उनकी हत्या का पाप ले रहे है भले ही आज हमें इस बात का भय ना हो कि पाप की सजा भी मिलती है  पर ये तय है कि विधि के विधान के अनुसार व्यक्ति को उसके कर्म के हिसाब से सजा मिलना तो तय है फिर भी हम उन गायों का मर्डर कर रहे है....यार ये तो बहाने है जैसे मौत हर व्यक्त के लिये बहाना लेकर आती है वैसे ही  ये बहाना है कि सरकार कुछ नही कर रही है सरकार जिम्मेदार है ठीक है भाई पता है ये भारत है जहां पर बेटी पैदा होने पर रोड पर या किसी कुँए मे डाल दी जाती है और जब किसी की नजर पढ जाती है और अगर उसकी देख रेख या इलाज में कोयी देरी हुयी तो उसकी भी जिम्मेदार सरकार ही  हो जाती है. ये बहाने भुलाओ और जरां सोच कर देखों की इन गायों की मौत का जिम्मेदार ना सरकार है और ना कोयी बल्कि जिम्मेदार हर  वो नागरिक है जो दूध पीने के बाद गायो को अन्ना करके छोड देते है.......हम अगर आज ये प्रण ले कि हम ना तो गाय को दूध पीने बाद छोडेगे और ना उनके द्वारा जन्म दिये गये बछडें और बछियों को तो ये तय है ना किसी व्यक्ति का रोड पर एक्सीडेंट किसी अन्ना जानवर की वजह से होगा और ना ही किसी किसान की फसल बर्बाद होगी और ना ही तुम आप और सरकार दोसी होगी....हां ये सही है कि आज के बदलते हुये परिवेश को देखते हुये जिस हिसाब से आधुनिक मशीनों का प्रयोग खेतों की जुताई में किया जा रहा है उस हिसाब से सांडो का अन्ना होना लाजमी है पर जरा सोचो अगर ये गाय जो हम आप की बजह से दूध पीने के बाद छोड दी जाती है और वो हम सब छोडना बंद कर दे तो ये तय है कि सांड के रूप मे कोयी अन्ना जानवर रोड पर नजर नही आएगा हो सकता है मेरे बिचारो से कोयी सहमत होगा कोयी नही होगा किसी की  सोच  कुछ और होगी पर मेरे सोचने से तो कुछ होने वाला नही है  जब तक हम नही सोचेंगे और आप को सोचने के लिये मजबूर नही कर देगे तो ये तय है कि आज जितना हमारा भारत दिन पर दिन स्वच्छता की ओर बढता जा रहा है वो शायद आज नही बढता और बिना सोचे समझे देश के लिये सोचना मोदी के द्वारा बेहतरीन कदम ये साबित करता है कि व्यक्ति बडा हो या छोटा पर अपने सपने अपनी उडान अपनी दिशा स्वंय तय कर सकता है और जब दिसा तय हो जाती है तो कामयाबी अपने आप कदम चूमने लगती है....ऐसे ही मै एक उदाहरण अपने पिता जी श्री सिद्धेश कुमार त्रिपाठी ( गुरूजी) का देता हूं जिन्होंने पिछले कुछ साल पहले एक गाय पास के गांव के एक किसान से खरीदी थी जिसका उन्होने दो साल लगातार दूध पिया  सेवा की और उनसे प्राप्त बच्चो की परवरिश भी उसी तरह कि जिस तरह शायद एक इंसान की जाती है पर जब समय आाया कि अब ये किसी काम के नही और ना ही ये मेरे किसी काम आयेगे तो स्वय एक गाडी करके पास की गौशाला मे छोडकर आये..... और गाय कि सेवा इस आस में करते है जिस आस में इशान अपने बेटे की परवरिश के बाद करता है कि मेरे लिये बुढापे की लाठी बनेगा.... पर कितनो की औलादे बन पाती ये तो दूसरा विषय है... और जब गाय का दूध देने का समय आया तब जगह के आभाव की बजह से गांव के ही किसी पंडित को गाय को बेच दिया. और जिन पंडित जी को गाय दी गयी थी उन्होने उस गाय को अन्ना छोड दिया और जब इस बात का पता हमारे पिता श्री सिद्धेश कुमार को चला तो उन्होने उसी गाय को पुन: निस्वार्थ सेवा के उद्देश्य से दोबारा बांध ली और प्रण किया कि मरते मर जायेगी पर ये गाय को अब हम ना तो बेचेंगे और ना किसी को देगे.....मै ये कहानी बता कर अपने आप की प्रशंसा या पिता जी की तारीफ के लिये नही कर रहा क्योकि पिता हर बेटे के लिये वो वट होता है जो हमेशा छाव के रूप मे बेटे के सर पर हाथ रखे रहता है और ये भी है हमारे पिता जी जैसे ना जाने कितने लोग इस दुनिया में होगे.. ये कहानी का मकसद सिर्फ इतना है कि महानता कर्मों से आती है और कर्म संस्कार से और संस्कार अच्छी परवरिश से और परवरिश हम सब करते है. चाहते है तो क्यो ना आने वाली पीढ़ी या फिर इस पीढी के नौजवानों को हम वो संस्कार देने का प्रयास करे जिससे किसी को कोयी जिम्मेदार ना ठहरा सके और स्वंय अपनी जिम्मेदारी का आभास करे और उसका निर्वहन करें... और हम भी साथ में ये प्रण करे कि ना तो किसी गाय को दूध पीने के बाद अन्ना छोडेगे।

 

 

                                  अनुराग सिंह सेंगर( पत्रकार)

                                           बिधूना (औरैया)