मानवता के महान पुजारी थे महात्मा गांधी: वरिष्ठ पत्रकार घनश्याम सिंह

सादा जीवन उच्च विचार,सत्य,अहिंसा,सदाचार  के बल पर विश्व विख्यात हुए मोहन दास करम चंद गांधी


गांधी जी के मानवतावादी सिद्धांत जन-जन के लिए अनुकरणीय


  "हमारे देश के प्रथम महान व्यक्तित्व और स्वंत्रता संग्राम के महान शान्ति सेनानी मोहनदास करम चंद गांधी "महात्मा गांधी"यथार्थ में मानवता के महान पुजारी थे,जिनके त्याग-तप- बलिदान से भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का राष्ट्र व्यापी जनजागरण व मार्गदर्शन मिला,आज ही के दिन 2 अक्टूबर 1869 को महात्मा गांधी ने पोरबन्दर गुजरात के  करमचंद्र गांधी के घर जन्म लिया था,उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो अत्यंत धार्मिक प्रवत्ति की महिला थीं, मन्दिर, पूजा,गृहकार्य उनकी दिनचर्या  थी, वह नियमित रूप से पूजा-उपवास रखती थीं और परिवार,पड़ोस में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी तन-मन से सेवा  में दिन-रात एक कर देती थीं,मां की इस मनोवृत्ति की महात्मा गांधी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, मोहनदास करम चंद गांधी के परिवार में  वैष्णव मत का अनुपालन किया जाता था, जैन धर्म की नीतियों का भी परिवार में गहरा प्रभाव था, जिसके मुख्य सिद्धांत, अहिंसा एवं विश्व की सभी वस्तुओं को शाश्वत मानना है। इस प्रकार,उन्होंने स्वाभाविक रूप से अहिंसा, शाकाहार, आत्मशुद्धि के लिए उपवास और विभिन्न पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सद्भावना का मार्ग स्वीकार किया,बताया जाता है कि महात्मा गांधी का परिवार हमेशा सादगी में विश्वास रखता था,साधा भोजन करते थे और किसी के अस्वस्थ होने पर औषधि के रूप में अनिवार्य उपवास करते थे,उनकी सादगी की ये मिशाल है कि वे हमेशा साधारण दर्जे की यात्रा किया करते थे,उनकी महान सोच ने उन्हें महान बना दिया,इतिहास साक्षी है कि आजादी के लिए सर्वाधिक जनजागरण महात्मा गांधी ने ही किया,अनवरत पैदल यात्राएं,सघन जनसंपर्क,जनसमूह का ऐतिहासिक हृदय परिवर्तन सदियों तक याद किया जाएगा, महात्मा गांधी ने भेदभाव छुआछूत के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी अनगिनत आंदोलन चलाये,जिनके फलस्वरूप विश्व समुदाय में उनका सम्मान से नाम लिया जाता है,
मोहनदास करमचंद उर्फ महात्मा गांधी लगनशील विद्यार्थी थे,जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपने छात्र जीवन में कई पुरस्कार और छात्रवृत्ति प्राप्त की,वह  बीमार परिजनों की सेवा करते थे व घरेलू कामों में मां का हाथ बंटाते थे,
गांधी जी जब केवल तेरह वर्ष के थे और स्कूल में पढ़ते थे उसी वक्त पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा से उनका विवाह कर दिया गया।1887 में मोहनदास ने  'बंबई यूनिवर्सिटी' की मैट्रिक की परीक्षा पास की और भावनगर स्थित 'सामलदास कॉलेज' में दाखिल लिया। 
पर गांधी जी का मन उनके 'सामलदास कॉलेज' में कुछ खास नहीं लगा, सितंबर 1888 में वह लंदन पहुंच गए। वहां पहुंचने के 10 दिन बाद वह लंदन के चार कानून महाविद्यालय में से एक 'इनर टेंपल'में दाखिला लिया, 
1906 में टांसवाल सरकार ने दक्षिण अफीका की भारतीय जनता के पंजीकरण के लिए विशेष रूप से अपमानजनक अध्यादेश जारी किया। भारतीयों ने सितंबर 1906 में जोहेन्सबर्ग में गांधी के नेतृत्व में एक विरोध जनसभा का आयोजन किया इस प्रकार उनके हृदय में सत्याग्रह का जन्म हुआ, इसके बाद दक्षिण अफीका में सात वर्ष से अधिक समय तक संघर्ष चला। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन गांधी के नेतृत्व में भारतीय अल्पसंख्यकों के छोटे से समुदाय ने सघर्ष  किया, सन् 1914 में महात्मा गांधी  भारत लौट आए,उनके त्याग और बलिदान देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया। इस दौरान फरवरी 1919 में अंग्रेजों के बनाए रॉलेट एक्ट कानून पर  अंग्रेजों  का विरोध करते हुुुए सत्याग्रह आन्दोलन की घोषणा कर दी,इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्‍मा गांधी ने भारतीय स्‍वतंत्रता के लिए किए जाने वाले अन्‍य अभियानों में सत्‍याग्रह और अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि 'असहयोग आंदोलन',नमक  आंदोलन, दाडी यात्रा' तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन' छेेड़े  जिससे भारत को 15 अगस्‍त 1947 को स्‍वतंत्रता मिल गई, भारतीय इतिहास का वह काला दिन जब महात्मा गांधी के महान विचारों से भ्रमित नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को सायंकालीन प्रार्थना को जाते समय बिड़ला भवन दिल्ली में पिस्तौल से ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर अंहिंसा एवम मानवता के पुजारी महात्मा गांधी की हत्या कर दी,इस मामले में मुख्य अभियुक्त नाथूराम गोडसे व उसके साथी नारायण आप्टे को मृत्यदंड मिला व सह अभियुक्तों गोपाल गोडसे,मदनलाल पाहवा,विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास की सजा मिली,इस तरह से मानवता के महान पुजारी का भौतिक  अंत तो हो गया पर वे अपने पीछे जो मानवतावादी सिद्धांत छोड़ गए वे सदैव याद किये जायेंगे,आओ हम सभी देशवासी महात्मा गांधी जैसे महापुरुष के जन्म दिवस पर सत्य,सादगी,सदाचार,अहिंसा के सिद्धांतों को आत्मसात कर "भारत माता" का पुनुरुद्धार करें-



"गांधी जी के ऋणी रहेंगे,
  सारे  भारत वासी।
जिनकी सत्य अहिंसा से,
 हमने पायी आजादी।
जन्म से लेकर अंत काल तक,
 कभी नहीं की कायरता।
अन्याय,अधर्म से लड़े निरंतर,
 करके कैद निरंकुशता।
हिन्द देश की गिरी सभ्यता,
 गांधी तुमने उज्जवल की।
बिना अस्त्र और बिना शस्त्र के,
भू पापों से की हल्की।
भारत मां के सच्चे सेवक,
महा कर्म कर महा हुए।
आज रो रहे भारतवासी,
बापू मेरे कँहा गए।
सत्य अहिंसा के व्रत से ही,
मिला "महात्मा गांधी" नाम।
आज तुम्हारे जन्म दिवस पर  बारंबार प्रणाम।।


       लेखक अमर स्तम्भ अखबार के उप संपादक है