अब बच्चों का कुपोषण मिटाने की जंग,14 राष्ट्रीय मुकाबले जीतने के बाद लिया कुपोषण से आज़ादी का निर्णय
कानपुर(अमर स्तम्भ)। कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए कानपुर की अनामिका ने अभियान छेड़ रखा है। उनके प्रयास को सफल बनाने के लिए अब स्थानीय लोगों ने भी हाथ बढ़ाया है, जिससे उनका हौसला बुलंद है। इसके साथ ही उनमें एक उम्मीद भी जगी है कि वह एक दिन जरूर अपने मकसद में कामयाब होंगी। अभियान के तहत वह जहां कुपोषण से बचने के उपाय लोगों को बताती हैं वहीं कुपोषित बच्चों को समय से इलाज मुहैया कराकर जीवन देने का भी काम कर रही हैं। वर्ष 2015 में पीसीएस (प्रोविन्सियल सिविल सर्विसेज) परीक्षा पास करके बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) के पद पर चयनित अनामिका सिंह सभी के लिए एक मिसाल बन गयीं हैं। कानपुर शहर की रहने वाली अनामिका ने कुल 14 नेशनल मुकाबले जीते हैं और कई गोल्ड मैडल भी अपने नाम किये हैं। यही नहीं माँ की दिली ख्वाहिश को पूरा करने के लिए अफसर बनने के बाद अब बच्चों को कुपोषण की जद से मुक्त कराने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। अनामिका ने बताया कि दो वर्ष के कार्यकाल में अब परियोजना शहर द्वितीय के 250 केंद्रो मे से कुल 110 केंद्रों में कोई भी बच्चा अतिकुपोषित नहीं है। अनामिका ने बताया कि पोषण माह के प्रथम दिवस को वजन दिवस के रूप में मनाया गया। इसके तहत परियोजना शहर द्वितीय के 250 केंद्रों के करीब 26 हजार बच्चों का वजन किया गया जिसमें 0.74 प्रतिशत बच्चे यानि 192 बच्चे ही अतिकुपोषित चिन्हित किये गए। यह इस बात का प्रमाण है कि कुपोषण जैसी बीमारी अब ज्यादा दोनों तक नहीं टिक पाएगी। उन्होंने कहा की उन्हें समाज में कुछ बेहतर करके एक अलग ही ख़ुशी मिलती है। अनामिका कहती हैं की बच्चे ही समाज का भविष्य हैं और यदि कुपोषण जैसे कलंक का खात्मा होगा तभी भविष्य उज्जवल बनेगा। पूरे शहर को सुपोषित करने की जिद में कुपोषण के खिलाफ अभियान चला रहीं अनामिका का कहना है कि जब तक पूरा शहर कुपोषण मुक्त नहीं हो जाता तब तक चैन से नहीं बैठूंगी।
कुपोषण के खिलाफ चलाया अभियान
अनामिका ने लगभग एक वर्ष पूर्व जब परियोजना का कार्यभार संभाला उस समय परियोजना में लगभग 1600 पंजीकृत बच्चे अति कुपोषित थे। कुपोषण को दूर करने के लिए अनामिका ने एक अभिनव प्रयास प्रारम्भ किया जिसमे प्रत्येक माह वजन दिवस मनाकर लोगो में जागरूकता फैलाई गयी। शत प्रतिशत बच्चों का उन्होंने हेल्थ चेक अप कराया जिसमें जो बच्चा अतिकुपोषित होता था उसे लाल गुब्बारा, जो कुपोषित उसको पीला और जो सामान्य श्रेणी का होता उसको हरा गुब्बारा दिया जाता था । साथ ही अभिभावकों को समझाया जाता था कि लाल या पीले रंग का गुब्बारा आपके बच्चे की सेहत के लिए ठीक नहीं है। प्रयासों का नतीजा ये हुआ कि 2018 में संख्या 1600 से घटकर 350 ही रह गयी थी और अब वर्तमान में परियोजना शहर द्वितीय में कुल 192 बच्चें ही अतिकुपोषित बचे हैं।
शुरू किया पहला कौरा अभियान
अनामिका को अपनी विभागीय नौकरी के साथ साथ कुछ न कुछ नया करने की आदत हमेशा से ही रही है। इसी लिए अपनी विभागीय नौकरी के साथ सरकारी व्यवस्था से अलग उन्होंने नवरात्रि में आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता व सहायिकाओं के जरिये 'पहला कौर कन्या को' अभियान की शुरुआत 19 मार्च 2018 को की थी। 200 बच्चियों को दही खिलाकर इसका शुभारम्भ किया गया था ताकि लोग बेटों की तरह बेटियों के पुष्टाहार पर भी ध्यान दें। अनामिका नवरात्रि का समय इसलिए मुफीद मानती हैं क्योंकि इसमें बच्चियों के प्रति भावना ज्यादा बढ़ती है। मुख्य विकास अधिकारी द्वारा इस अभिनव पहल की प्रशंसा भी की गयी थी।
जिलाधिकारी ने भी किया सम्मानित
अनामिका बताती हैं कि जून 2018 में मेडिकल कॉलेज के सहयोग से परियोजना शहर द्वितीय में गर्भवती ,धात्री एवं किशोरियों की स्वास्थ्य जांच हेतु 5 कैंप का आयोजन किया जिसमे करीब 260 लाभार्थियों की जांच हुई तथा सम्बंधित परामर्श दिया गया। कार्यक्रम की सफलता में 92 मुख्य सेविका , आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका को जिलाधिकारी द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया गया था। उन्होंने अनामिका के अनूठे प्रयास की सराहना की।