अबला जीवन की दुर्दशा (कविता)

"अबला जीवन हाय तुम्हारी देख दुर्दशा आता है आंखों में पानी"
तुम नर की आधारशिला हो,तुमसे ये संसार चला हो,तुम ही बेटी,तुम ही माता,तुम ही जग की नानी!
भूखे रह कर,अपने तन को बिना बसन रख, सुत को पाला।
 भूल गया सब,सुख में डूबा,कर्ज मात का सिर पे लादे लाला।
तुम दर-दर की ठोकर खाती, नहीं तुम्हारा अपना कोई।
 अब कोई पड़ता नहीं दिखाई स्वारथ में सब दुनियां सोई।
अपनी आंखें खोलो!कुंभकरन की संतानों!ओ समाज के ठेकेदारों! शर्म करो कुछ और न लूटो अपने घर को पहरेदारों!


                         त्रिभाषी रचयिता व वरिष्ठ पत्रकार
                               घनश्याम सिंह (औरैया)