जब हरि को जानने के इच्छा मन में जागृत होती है उसी का नाम भागवत



बांदा(अमर स्तम्भ)। बिजय बहादुर सिंह का पुरवा महोखर बाई पास में चल रही श्री मद् भागवत महापुराण कथा के षष्ठम दिवस पर महाराज श्री ने प्रभु के रसमय स्वरुप और श्रीकृष्ण की सुंदर लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।

पूज्य श्री उमाशंकर त्रिवेदी जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की जब हरि को जानने के इच्छा मन में जागृत होती है उसी का नाम भागवत है। क्योंकि ईश्वर को जाने बिना आपको प्रित ही नहीं हो सकती। हम किसी को जानते है, उसके स्वभाव को जानने की कोशिश करते हैं, जब उसका स्वभाव अच्छा लगता है तो उससे प्रेम होता है। संसार को व्यवाहर भी विचित्र सा है यह मतलब पर टीके हुए हैं सारे व्यवहार किसी से भी जोड़ लिजिए। शुरूआत में तो बाते बड़ी लम्बी लम्बी कर देते हैं लेकिन जब बारी आती है तो सब किनारे हो जाते हैं। तो ईश्वर को जब तक आप जानने के इच्छा मन में नहीं रखेंगे तब तक प्रित नहीं हो सकती। अगर आप ईश्वर को जानना चाहते हैं, ईश्वर का स्वभाव, उनका गुण, उनसे प्रित लगाना चाहते हैं तो आपको सत्संग मे जाना होगा। महाराज श्री ने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने कहा है कि अन्न का कभी अपमान नहीं करना चाहिए, अन्न को बर्बाद नहीं करना चाहिए। संत का क्षण और अन्न का कण कभी बेकार नहीं करना चाहिए। पूज्य श्री उमाशंकर त्रिवेदी जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1. एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2. दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा। पहले तो भगवान ने रास किया था लेकिन अब महारास में प्रवेश करने जा रहे हैं। तीन तरह से भगवान श्री कृष्ण ने रास किया है। एक गोपी और एक कृष्ण, दो गोपी और एक कृष्ण, अनेक गोपी और एक कृष्ण। इस महारास में कामदेव ने गोपियों को माध्यम बनाकर 5 तीर छोड़े थे। अब महारास के समय कामदेव ने 5 तीर छोड़े- 1. आलिंगन 2. नर्महास 3. करळकावलिस्पर्श 4. नखाग्रपात 5 . षस्मित्कटाक्षपात ये पांच तीर कामदेव ने गोपियों के माध्यम से छोड़े थे लेकिन भगवान ने हर तीर को परास्त किया। श्रीमद भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए उमाशंकर त्रिवेदी जी महाराज ने कहा कि हमारी इच्छाएं ही सारे पापों की जड़ हैं। इसलिए इन इच्छाओं को ही छोड़ दे। दुनिया की सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। हर भक्त के मन में यह भाव होना चाहिए कि हमें श्री कृष्ण मिले, भले ही मेरे जीवन के अंतिम साँस से पहले ही क्यों ना मिले। उन्होंने कहा कि सद्कर्मों से आत्मा खुश होती है। इसका प्रमाण देखना हो तो कभी किसी का छीन करके खाओ, देखना आत्मा खुश नहीं होगी। फिर किसी ज़रूरतमंद को कुछ खिलाकर देखना कि आत्मा कितनी खुश होती है। भागवत पाठ संदेश एवं पूजन में सहायक ब्यास श्री कपिल शास्त्री पैलानी, श्री शिव स्वरूप मिश्रा चित्रकूट, संगीत मंच पर हारमोनियम में सुरेंद्र सिंह अमारा, आर्गन प्लेयर विकास त्रिपाठी कानपुर देहात, नाल वादक, आनंद पाल सिंह नांदा देव, रामनरेश पैलानी। कथा के पारीक्षित श्री मती कमला देवी, श्री सुलखान सिंह ने ईष्ट मित्रों सहित भागवत कथा का रसपान किया इस अवसर पर सैकडो श्रोताओं ने कथाम्रत का रस पान कर अपने मानव जीवन को धन्य किया।