मर्यादा की सीमाएं लाँघते प्रधानमंत्री

 प्रधानमंत्री पद की अपनी गरिमा होती है । उसकी अपनी सीमाएं होती हैं । क्योंकि उस पर पूरा देश भरोसा करता है। और बहुत सारी उम्मीदों के साथ उसकी तरफ लोग निहारते रहते हैं । उसकी हर गतिविधि पर आमजन की नजर रहती है। जनता उस पर अटूट विश्वास करती है । देश की संमृद्धता, रक्षा और सुरक्षा का भार उसके कंधों पर होता है। आजाद भारत के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों ने अब तक उस गरिमा को बना कर रखा है । कुछ एक मामलों को छोड़ कर। लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री ने जिस तरह पाँच साल से अपने क्रियाकलापों से अपनी छाप बनाई वह भारतीय लोकतंत्र में शर्मनाक घटना है । पाँच साल तक मोदी जी प्रधानमंत्री कम प्रचार मंत्री ज्यादा नजर आते हैं । देश की जनता ने उन्हें अपार प्यार और सम्मान दिया। पूर्ण बहुमत देकर देश उनके हाथों में देश सौंपा । लेकिन वह अपने पद के प्रति कभी गंभीर नजर नहीं आए । उन्होंने नफरत कि राजनीति की । देश ,समाज, वर्तमान और अतीत सब जगह कब्जा करने के मंसूबे रखने वाले मोदी जी शायद यह भूल गए कि वह देश के प्रधानमंत्री हैं । तभी तो वह अपने आप को कभी वैज्ञानिक साबित करने की, कभी अध्यापक ,कभी व्यापारी साबित करने की कोशिश करते हैं । वह लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान नहीं करते।वह स्वयं अर्थशास्त्री और स्वयं न्यायविद बनने की कोशिश करते हैं। और इतिहास की आलोचना करने से भी बाज नहीं आते। आज तक के भारतीय इतिहास को नकारते हुए तमाम महापुरुषों और समूचे देश के क्षमताओं पर सवाल उठाते हैं। वह जिस तरह से बयान देते हैं उससे यह लगता है कि वह यह साबित करना चाहते हैं कि उनसे पहले भारत था ही नहीं । भारत उनके ही उद्भव के साथ उदय होता है । और आगे बढ़ता है । वह बहुत बार बड़ी शर्मनाक टिप्पणियां करते हैं । ऐसे भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं जो असंसदीय ही नहीं ,अश्रवणीय भी हैं । जिनका इस्तेमाल हमारी व्यक्तिगत बोलचाल की भाषा में भी अश्रवणीय और निंदनीय माना जाता है । देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे वह  घृणा करते हैं । देश के हर महान व्यक्ति के प्रति उनके मन में ना जाने कितनी नफरत भरी हुई है । आजादी के बाद देश की तमाम उपलब्धियों और विश्व में अपनी पहचान को वह सिरे से नकारते हैं । वह किसी की बात नहीं सुनते सिर्फ अपने मन की बात करते हैं । देश के लिए किए जाने वाले बड़े बड़े फैसलों में विशेषज्ञों की राय के उलट अपना फरमान जारी करते हैं । वह न्यायपालिका का सम्मान नहीं करते और ना ही कार्यपालिका कोई विश्वास नहीं रखते। वह सिर्फ और सिर्फ खुद को सही साबित करने और सत्ता में बने रहने के लिए हर समय प्रयासरत रहते हैं । भाजपा के ही महान नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने कहा था सरकारें आएंगी और जाएंगी  लेकिन देश यही रहेगा । पर हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री शायद ऐसा नहीं सोचते । यह चिंता का विषय है । हमारी सभ्यता और संस्कृति जिससे हमारे पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों ने सशक्त बनाया और पूरी दुनिया में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया । उन सब के योगदान को नकार कर आत्ममुग्ध होना एक गलत परंपरा की शुरुआत है । इसके प्रति माननीय प्रधानमंत्री जी को गंभीर होना चाहिए और अपने पद की गरिमा और मर्यादा को बनाए रखना चाहिए 
                                             


         डा. राजेश सिंह राठौर
      वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक