गरियाबंद/धान के बदले किसान अब मक्का और दलहन तिलहन की खेती पर दे रहे है जोर
मैनपुर:-गरियाबंद जिला अंतर्गत के विकास मैनपुर क्षेत्र के किसान पिछले कई दशक से रवि सीजन में धान की खेती कर रहे थे लेकिन कृषि विभाग के उच्च अधिकारियों की सलाह व निर्देशन पर पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्र के किसान अब मक्का की खेती पर जोर दे रहे है किसान धान की पैदावार कम होने व तरह तरह की बीमारी व रवि सीजन की धान फसल का उचित मूल्य नही मिलना व ज्यादा लागत के चलते धान की खेती करना छोड़ रहे हैं,रवि फसल की धान की पैदा वार 13 से 15 किवंटल प्रति एकड़ होती है तो मक्का का उत्पादन 20 से 25 किवंटल प्रति एकड़ होता सांथ ही छत्तीसगढ़ की कांग्रेस की भुपेश सरकार ने सत्ता संभालते है खरीफ धान का समर्थन मूल्य 25 प्रति किवंटल कर दिया है लेकिन रवि फसल की धान का कोई माई बाप नही है किसानों को अपनी रवि फसल की धान व्यापारीयों को ही बेचना पड़ता और व्यापारी 12सौ रुपये से 14 सौ रुपया प्रति किवंटल की दर से ही धान खरीदते है जिसके चलते किसानों की लागत भी निकलना मुश्किल हो जाता है।जबकि मक्का को व्यापारियों द्वारा 16 सौ से 18 सौ रुपये प्रति किवंटल की दर से खरीदा जाता है।सांथ ही कृषि विभाग में संचालित योजनाओं के प्रचार प्रसार व योजनाओं का लाभ किसानों को मिलना भी इसका एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।धान एक ज्यादा पानी की खपत वाली फसल मानी जाती है,मैनपुर क्षेत्र के किसान
ट्यूबबेल से सबमर्सिबल पंप के जरिये सिंचाई करते है,जिन्हें कृषि विभाग में संचालित किसान सम्रद्धि,सोलर सेट,शैलो बोर जैसी विभिन्न योजनाओं का भी भरपूर लाभ मिला है तो वही भूजल स्तर हर अगले सीजन में घटता जा रहा है,विकास खण्ड मैनपुर अंतर्गत के ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है,इस हालात में पर्याप्त सिंचाई के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, किसानों ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए धान की फसल का विकल्प तलाशना शुरू किया था उन्हें इसका विकल्प मक्के व दलहन तिलहन फसलों में दिखा, मक्का जैसी फसलों की खेती करना शुरू कर दिया हैं किउंकि इन फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है।जो कभी मोटे अनाज के रूप में कभी गरीबों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मक्का आज उद्योग जगत में भी अपना स्थान बना चुकी है। स्टार्च, अल्कोहल, एसिटिक व लेक्टिक एसिड, ग्लूकोज, रेयान, गोंद (लेई), चमड़े की पालिश, खाद्यान्न तेल (कार्न ऑइल), पेकिंग पदार्थ आदि में इस्तेमाल की जाने लगी है।मानव एवं पशु आहार मक्का का पौधा मेक्सिकन मूल का माना जाता है। इसकी खेती देश के सभी प्रांतों में की जाती है। इसके लिए गर्म तर मौसम उपयुक्त होता है। खरीफ के साथ ही इसकी मुख्य फसल ली जाती है। वैसे जायद व वसंत में भी इसे उगाया जाता है। फसल नहीं देने पर इसे पशु चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। तेज सर्दी के दिन छोड़कर किसी भी माह में उगाया जा सकता है। यह अधिक उपज देने वाली फसल है।किसानों की माने तो धान की फसल के हिसाब से गांव में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है,अगर एक और फसल में नुकसान होता है तो मेरे परिवार पर कर्ज का बोझ आ जाएगा,उन्होंने बताया कि इस साल अच्छी बारिश हुई है, इस वजह से मक्के की सिर्फ चार-पांच बार सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है,इसके मुकाबले धान 10-20 गुना ज्यादा पानी मांगता है, एग्रीकल्चरल काउंसिल ऑफ इंडियन के मुताबिक, एक किलो चावल पैदा कराने के लिए 2500-5500 लीटर पानी की जरूरत होती है,प्रदेश के कृषि विभाग का कहना है कि रवि सीजन में धान की खेती के कारण भूजल स्तर में कई फीसदी गिरावट का सबसे बड़ा कारण धान की फसल रही है, इस विषय पर भावेश कुमार शांडिल्य वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी से चर्चा करने पर उन्होंने कहा कि जिला कलेक्टर के निर्देशन व उप संचालक कृषि एफ.आर.कश्यप जी के मार्ग दर्शन पर शासन द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं सहित राज्य पोषित फसल प्रदर्शनी योजना के तहत ग्रीष्म कालीन धान के बदले मक्का दलहन तिलहन के खेती पर जोर दिया जा रहा है वर्तमान में हमारे विकास खण्ड मैनपुर खरीफ वर्ष 2020 में धान का रकवा 20017 हेक्टयर था वहीँ दूसरी ओर 9500 हेक्टयर मक्का एवम दलहन तिलहन का 7000 हेक्टयर था वर्तमान रवि वर्ष 2020 में धान का रकवा विगत वर्ष 300 हेक्टयर था जो की अब मात्र 80 हेक्टयर भूमि पर है। 210 हेक्टयर भूमि जिसमे की किसानों द्वारा अलग-अलग टिकरा बाली 450 हेक्टयर भूमि पर मक्का की खेती की जा रही है सांथ ही अभी भी मक्का व दलहन तिलहन की किसानों द्वारा बोनी जारी है जिस्से अभी रकवा और बढ़ने की संभावना है।इसी प्रकार दलहन तिलहन का रकवा जिसमे सरसो 600 हेक्टर,मुंगफली 400 हेक्टयर,मूंग550 हेक्टयर,मटर250 हेक्टर,अलसी 180 हेक्टयर,उडद50 हेक्टर,तिवड़ा व लाखडी 650 हेक्टयर,सांथ ही किसानों द्वारा 400 हेक्टयर भूमि पर साग भाजी की खेती की जा रही है हमारे विकास खंड 1400 से अधिक सौर ऊर्जा नलकूप स्थापित है जिससे किसान अपनी खेती फसल की सिंचाई करते है।