'होली विशेष' पर एक प्रस्तुति

हाथ में गुलाल लिये गली गली घूमते थे
ढोलकों की थाप पर मस्ती में झूमते थे !


फाग की मधुर धुनें मोहती थी सबका मन
फाल्गुनी बयार में महकता था उपवन  !!


भॉति भॉति रंगो से रंगे दीखते थे गाल 
बैर भाव भूल कर धुल गये सभी मलाल !


पर आज फाल्गुनी बयार विष मयी हो गयी
उपवन के वृच्छों की कोपलें भी  खो गयी  !!


रंग से सराबोर गॉव की वो गोरियॉ
भंग के नशे मे धुत युवकों की टोलियॉ !


खो गयी न जाने कहॉ होलिका दहन की आग
न ढोलकों की थाप है न गूँजता है कहीं  फाग !!


खुशबुयें पकवानो की अब नाक नही भेदतीं
जैसे सबके सीनो पर नागिनें हैं   लोटती  !


गॉव की चोपाल पर हो रही है सॉय सॉय
टी.वी. स्क्रीन पर चल रही है धॉय धॉय  !!


भीड़ गॉव की घटी बाजार जब से बढ़ गये
नष्ट हुयी परंपरा  मूल्य  नये गढ़गये !


रसायनो की भीड़ में रंगो की  सिसकारियॉ
बिलख रहीं भाग्य पर बॉस की पिचकारियॉ !


धुलेटी में उड़ता नही धूल का गुबार अब
पूँजीवाद का शिकार हो गया संसार सब !!


                                          डॉ राजेश सिंह राठौर   


                राजनैतिक संपादक


                'दैनिक अमर स्तम्भ'